सोमवार, 26 जनवरी 2009

प्यार किया तो क्या कमाल किया...

आज प्यार का दिन है। न जाने कितने लोग आज अपने प्रिय को अपना दिल चीरकर दिखाएंगे और उम्मीद करेंगे कि उसके दिल में भी उन्हीं की तस्वीर मिले। उन्हें दिली शुभकामनाएं।

आपने भी प्यार किया होगा ? कई-कई बार किया होगा। नहीं किया , तो आपसे ज्यादा बदनसीब इंसान कोई नहीं। जिसने प्यार नहीं किया , वह या तो बहुत ही स्वार्थी किस्म का इंसान होगा , जिसे अपने सिवा किसी के बारे में सोचने की चिंता या फुर्सत नहीं है या फिर उसके पास वे आंखें नहीं होंगी , जो अपने चारों तरफ बिखरी पड़ीं अच्छाइयों की पहचान कर सकें।

इस मंगलाचरण के बाद अब आते हैं असली सवाल पर - जो प्यार करते हैं , वे क्या कोई कमाल करते हैं ? अगर आपको कोई व्यक्ति (खासकर विपरीत सेक्स का) अच्छा लगता है और आप उसके प्रति आसक्ति का भाव रखते और जताते हैं , तो इसमें बड़प्पन की कौनसी बात है ? किसी को कोई खास चीज़ अच्छी लगती है , तो आप यह तो नहीं कहेंगे कि वह कोई बहुत बड़ी भावना रखता है। सीधा-सादा फैक्ट यह है कि उसे उस चीज़ की तलब है। मिल जाए तो वह संतुष्टि का अहसास करेगा। अगर टेस्ट के मुताबिक निकली , तो ज्यादा खुशी होगी। अगर कमी-बेशी रही , तो उतना मज़ा नहीं आएगा।
इंसानी प्यार की तुलना किसी निर्जीव चीज से करना आपको अजीब लग रहा होगा। लेकिन सच मानिए - आसक्ति , ज़रूरत और संतुष्टि के पैमाने पर दोनों बातें एक ही हैं। याद कीजिए अपना कोई भी प्यार का किस्सा। वह आपको क्यों पसंद है ? उसका शारीरिक सौंदर्य , स्वभाव , उसकी कोई और खासियत जैसे आवाज़ या इंटलेक्ट या बोल्डनेस या लंबे समय तक आप दोनों का साथ। ढेरों चीजें हैं जो आपके मन में किसी के प्रति आकर्षण पैदा कर सकती हैं। यह डिपेंड करता है कि आपको क्या पसंद है। मसलन किसी को ऐसा व्यक्ति बिल्कुल ही नहीं भा सकता है , जो बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का या पुरातनपंथी हो। मगर किसी दूसरे मिजाज़ के इंसान के लिए वही साथी के सर्वश्रेष्ठ गुण हो सकते हैं।

क्या वह भी मुझे चाहता/चाहती है?
अब यहां जाकर एक पेच आता है और चीज़ वाली तुलना छूट जाती है , क्योंकि आप तो किसी चीज़ को पसंद करते हैं , लेकिन वह चीज़ भी आपको पसंद करती है - इसका पता लगाने की कोई तरकीब नहीं है। लेकिन प्रेम के मामले में असली अचीवमेंट तभी महसूस होता है , जब आपको भी कोई चाहनेवाला मिले। प्रेम की असली ताकत यही है कि वह आपको महसूस कराता है कि आप भी कुछ हैं। करोड़ों लोगों की दुनिया में जहां किसी को किसी की परवाह नहीं है , वहां अगर कोई ऐसा व्यक्ति हो जो सिर्फ आपको पसंद करे , आपका खयाल रखे , आपके बारे में सोचे और आपको खुश करने और रखने की जुगत में रहे - दूसरे शब्दों में आपको उसकी जिंदगी का शहंशाह बना दे , तो खुशी कैसे नहीं होगी!
खुशी तो होगी लेकिन कितनी , यह दो-तीन बातों पर डिपेंड करता है। एक यह कि जो आपको चाहता है , क्या वह भी आपकी पहली पसंद है ? दूसरा , जो आपको चाहता है , उसे और कितने लोग चाहते हैं , यानी उसकी मार्केट में क्या डिमांड है ? अगर उसे चाहने वाले कई हैं , फिर भी उसने आपको चाहा , तो आपका ईगो फूलकर कुप्पा हो जाता है। लेकिन जो आपको चाहता है , उसकी खास पूछ नहीं है और आपको भी वह कुछ खास आकर्षित नहीं करता , तो आपको थोड़ा अच्छा तो लगता है , मगर उसके प्रति प्यार नहीं , दया उमड़ती है।

यानी जिस तरह लालू प्रसाद अंडमान-निकोबार के किसी अदने से टापू के सर्वेसर्वा बनकर संतुष्ट नहीं हो सकते , वैसे ही हम भी हर किसी का प्यार पाकर संतुष्ट नहीं हो सकते। हम भी किसी खास दिल का सितारा बनने की चाह रखते हैं। अब यह खास व्यक्ति कौन है , यह वक्त , जरूरत और उपलब्धता पर निर्भर करता है। छुटपन में मुमकिन है आपको पड़ोस में ही ख्वाबों का शहजादा या मलिका नजर आने लगे। लेकिन बाद में स्कूल या कॉलेज में जब आपकी पहुंच का दायरा बढ़ता है तो उसकी जगह कोई और ले सकता है। व्यक्ति बदल जाता है मगर भावना वही रहती है। आपको एक बार फिर उस नए शख्स की हर चीज़ अच्छी लगती है। उसका गम आपका गम है , उसकी खुशी आपकी खुशी है। और इसीलिए उसके होठों की मुस्कान के लिए आप बाजार में नया- नया गिफ्ट ढूंढते रहते हैं। उसको एसएमएस करते हैं , उसको बताते हैं कि आप उसे कितना प्यार करते हैं।

प्यार है या इन्वेस्टमेंट?
आप इसे प्यार कहेंगे , मगर माफ कीजिए , यह सब तो एक तरह का इन्वेस्टमेंट है , ताकि वह व्यक्ति भी आपके प्रेम से इम्प्रेस्ट होकर आपको प्रेम करे और आपको महसूस कराए कि आप भी कुछ हैं। दो व्यक्तियों में इस तरह लेनदेन चलता रहे तो आप कह सकते हैं कि दोनों प्यार करते हैं। लेकिन असल में दोनों एक-दूसरे की जरूरत और ख्वाहिश को पूरा कर रहे हैं। दोनों को महसूस हो रहा है कि मैंने कुछ अचीव किया।
लेकिन ये दोनों कब तक प्यार करते रहेंगे ? जब तक अचीव करने के लिए कोई और उपलब्ध नहीं है। आप दसवीं में 90 परसेंट ले आए , आपको अच्छा लगा , मगर क्या आप उससे संतुष्ट हो गए ? कल आप ग्रैजुएशन करेंगे , एमबीए करेंगे। कहने का अर्थ यह कि अगर जिंदगी में हासिल करने के लिए और भी मंजिलें हैं और आपको लगता है कि आप उन्हें पा सकते हैं , तो क्या आप कोशिश नहीं करेंगे?

चलिए , पहेली छोड़कर सीधे मतलब पर आते हैं। एक व्यक्ति से आज प्रेम हुआ , अच्छा लगा , जाना-समझा। लेकिन कल कोई और मिला , उसमें कुछ अतिरिक्त खूबियां हैं , जो इस पहलेवाले में नहीं हैं। उसे भी पाने की इच्छा हुई। तो क्या कोशिश की जाए ? कोशिश करने में क्या हर्ज है ? ना में जवाब मिला तो मौजूदा तो है। बल्कि क्या मौजूदा व्यक्ति से प्यार करते हुए एक और से नहीं किया जा सकता ? सैद्धांतिक रूप से तो किया जा सकता है , मगर प्रैक्टिकल लेवल पर दिक्कतें आती हैं , क्योंकि जैसे ही आपके प्रिय ने किसी और को चाहा और आपको बताया या पता चला , वैसे ही आपका वह भ्रम टूट जाता है कि इस शख्स के लिए मैं एक्सक्लूसिव हूं। इसी भ्रम या भरोसे के बल पर ही तो आप प्रेम के झूले में झूल रहे थे। इसके बाद शुरू होता है यातना का दौर। महान प्रेम की भावना की जगह ले लेते हैं डर , जलन , खुद पर दया और बदला जैसे नेगेटिव इमोशंस। ऐसी ही दिमागी हालत में कई बार लोग किसी की जान ले लेते हैं या जान दे देते हैं।

जान देने वाले वे होते हैं , जिन्हें लगता है कि अब उनकी किसी को जरूरत नहीं रही , इसलिए जीने से क्या फायदा। दूसरी तरफ जान लेने वाले वे होते हैं , जो अपनी जरूरत पूरी करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। दोनों ही हालात में मामला जरूरत का है , जो पूरी हो तो आदमी खुश रहेगा , वरना मायूस।

अब सवाल सिर्फ यह बचता है कि क्या बिना जरूरत का प्यार मुमकिन है ? एक ऐसा प्यार , जिसमें आप किसी को नि:स्वार्थ भाव से चाहें , उस पर नेमतें लुटाते रहें और बदले में कुछ भी न चाहें। अगर वह किसी और से प्यार करे , तो भी ईर्ष्या न करें। अगर आप ऐसा प्यार कर सकते हैं , तो आप और आपका प्यार महान है। वरना वह अपनी साइकलॉजिकल जरूरतें पूरी करने का सामान है। और जैसा कि हमने पहले ही कहा - ऐसे प्यार में क्या कमाल है ?

इस मामले में आपकी क्या राय है ? क्या आपको भी लगता है कि प्यार लेनदेन का ही एक मामला है ? अपनी राय देने के लिए यहां क्लिक करें

(यह लेख 13 फरवरी को नवभारतटाइम्स.कॉम पर प्रकाशित हुआ था।)

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