सोमवार, 26 जनवरी 2009

करवा चौथ यानी हम दासी, तुम स्वामी...

(17 Oct 2008, 1103 hrs IST को नवभारतटाइम्स.कॉम पर प्रकाशित)

आज करवा चौथ का पर्व है। कई हिंदू शादीशुदा महिलाएं दिन भर बिना कुछ खाए-पीए रहेंगी ताकि अगले सात जन्मों में भी इसी पति का साथ मिले। फिर रात को सज-संवरकर , चांद देखकर और पति की आरती उतारकर अपना व्रत खोलेंगी। कुछ लोगों को यह सब इतना अच्छा लगता होगा कि वाह , पतिप्रेम का कितना आनंददायक पर्व है। लेकिन गहराई से देखें तो यह व्रत भी पति-पत्नी के अधिकारों और कर्तव्यों में सदियों से चले आ रहे फर्क को ही आगे भी जारी रखने का जरिया है। एक तरह से इसमें भी त्याग का वही जज़्बा है जो हम सती प्रथा में देखते हैं कि पति मरे तो पत्नी भी चिता पर साथ जल जाए लेकिन पत्नी मरे तो पति जल्द से जल्द दूसरी शादी कर ले।

पढ़ें : भोली बहू से कहती हैं सास

अव्वल तो यह मानने का कोई तर्क नहीं कि अगर हमें किसी के प्रति अपना प्यार जताना है तो वह भूखे रहकर ही जताया जा सकता है। लेकिन अगर यह मान भी लें कि किसी के लिए (भूखे रहकर) कष्ट सहना प्यार और समर्पण का प्रतीक है तो पत्नी ही यह त्याग क्यों करे , पति यह प्यार और समर्पण क्यों नहीं जताता अपनी पत्नी के प्रति ? क्या कोई भी ऐसा त्यौहार है किसी भी धर्म में जिसमें पति अपनी पत्नी या प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए कुछ भी त्याग करता हो ? मेरी जानकारी में तो नहीं है , किसी को मालूम हो तो बताए।

बहुत आसान है यह कहना कि महिलाएं अपनी इच्छा से यह उपवास रखती हैं लेकिन कभी उनके साथ भूखे रहकर तो देखिए – पता चल जाएगा कि भूख क्या चीज़ होती है। नीचे जिन पाठकों के कॉमेंट छपे हैं, उनमें से एक ने भी नहीं कहा कि वह पत्नी के साथ भूखे रहने को तैयार हैं। मेरी उनसे इल्तिजा है कि कम से कम एक बार तो करके देखिए और जानिए कि आपकी पत्नी आपके लिए खुद को कितना कष्ट देती है। पत्नी गृहस्थी का वह चक्का है जो कभी नहीं रुकता। पति तो सात दिन में एक छुट्टी पा जाता है लेकिन पत्नी को तो सातों दिन नौकरी करनी है। छह दिन के बाद छुट्टी न मिले तो पुरुष बिलबिला उठते हैं, पत्नियां 365 दिन काम करती हैं। उनका दिन सुबह 6 बजे से शुरू होता है और रात 11 बजे खत्म होता है। कामकाजी महिलाओं पर तो यह बोझ और ज्यादा है – घर भी है, दफ्तर भी। लेकिन इतना सब करके भी उन्हें यह सुनना पड़ता है कि पति भी तो उनका ख्याल रखते हैं, साड़ी-गहने देते हैं, मानो यह करके वे कोई एहसान कर रहे हों।

पढ़ें : ऐसे बीता लाजो का करवा चौथ

करवा चौथ पर दूसरी बात जो मुझे खटकती है, वह है आरती की। इस दिन पत्नी पति की आरती उतारती है यह मानकर कि पति ही उसका परमेश्वर है। लेकिन जवाब में पति तो पत्नी की आरती नहीं उतारता। बल्कि कुछ पति परमेश्वर ऐसे भी हैं जो बाकी दिन शराब पीकर या बिना पीए ही लातों और जूतों से पत्नी की पूजा करते हैं। मगर परंपरा है कि पति राक्षस भी हो मगर करवा चौथ के दिन पत्नी सजधज कर उसके लिए भूखी रहकर उसकी पूजा करके अपना व्रत खोलेंगी।

मेरे ख्याल से अगर आज की तारीख में इस पर्व को कायम रखना है तो उसे नया रूप देना होगा। पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे के लिए व्रत रखें , दोनों भूखे रहें। संभव हो तो दोनों मिलकर खाना बनाएं और रात में साथ-साथ खाएं। साथ ही एक-दूसरे के प्रति प्यार और विश्वास की शपथ दोहराएं। अगर आरती भी उतारनी हो तो दोनों एक-दूसरे की आरती उतारें या कोई किसी की न उतारे क्योंकि आरती ईश्वर की उतारी जाती है , इंसानों की नहीं और कोई इंसान ईश्वर नहीं हो सकता। अगर इस तरह से यह पर्व मनाया जाए तो यह पति-पत्नी के प्यार और विश्वास का पर्व होगा वरना पारंपरिक रूप में तो यह पत्नी को दासी और पति को स्वामी मानने की भारतीय हिंदू परंपरा को आगे बढ़ाने का त्यौहार है और जो आधुनिक कही जाने वाली महिलाएं इसे पारंपरिक रूप में मना रही हैं , वे जाने-अनजाने उसी दासी और स्वामी के संबंध को बढ़ावा दे रही हैं।


इस स्टोरी पर नवभारत टाइम्स के पाठकों के टोटल कॉमेंट्स (95) दूसरे रीडर्स के कॉमेंट्स पढ़ें और अपना कॉमेंट लिखें

प्यार किया तो क्या कमाल किया...

आज प्यार का दिन है। न जाने कितने लोग आज अपने प्रिय को अपना दिल चीरकर दिखाएंगे और उम्मीद करेंगे कि उसके दिल में भी उन्हीं की तस्वीर मिले। उन्हें दिली शुभकामनाएं।

आपने भी प्यार किया होगा ? कई-कई बार किया होगा। नहीं किया , तो आपसे ज्यादा बदनसीब इंसान कोई नहीं। जिसने प्यार नहीं किया , वह या तो बहुत ही स्वार्थी किस्म का इंसान होगा , जिसे अपने सिवा किसी के बारे में सोचने की चिंता या फुर्सत नहीं है या फिर उसके पास वे आंखें नहीं होंगी , जो अपने चारों तरफ बिखरी पड़ीं अच्छाइयों की पहचान कर सकें।

इस मंगलाचरण के बाद अब आते हैं असली सवाल पर - जो प्यार करते हैं , वे क्या कोई कमाल करते हैं ? अगर आपको कोई व्यक्ति (खासकर विपरीत सेक्स का) अच्छा लगता है और आप उसके प्रति आसक्ति का भाव रखते और जताते हैं , तो इसमें बड़प्पन की कौनसी बात है ? किसी को कोई खास चीज़ अच्छी लगती है , तो आप यह तो नहीं कहेंगे कि वह कोई बहुत बड़ी भावना रखता है। सीधा-सादा फैक्ट यह है कि उसे उस चीज़ की तलब है। मिल जाए तो वह संतुष्टि का अहसास करेगा। अगर टेस्ट के मुताबिक निकली , तो ज्यादा खुशी होगी। अगर कमी-बेशी रही , तो उतना मज़ा नहीं आएगा।
इंसानी प्यार की तुलना किसी निर्जीव चीज से करना आपको अजीब लग रहा होगा। लेकिन सच मानिए - आसक्ति , ज़रूरत और संतुष्टि के पैमाने पर दोनों बातें एक ही हैं। याद कीजिए अपना कोई भी प्यार का किस्सा। वह आपको क्यों पसंद है ? उसका शारीरिक सौंदर्य , स्वभाव , उसकी कोई और खासियत जैसे आवाज़ या इंटलेक्ट या बोल्डनेस या लंबे समय तक आप दोनों का साथ। ढेरों चीजें हैं जो आपके मन में किसी के प्रति आकर्षण पैदा कर सकती हैं। यह डिपेंड करता है कि आपको क्या पसंद है। मसलन किसी को ऐसा व्यक्ति बिल्कुल ही नहीं भा सकता है , जो बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का या पुरातनपंथी हो। मगर किसी दूसरे मिजाज़ के इंसान के लिए वही साथी के सर्वश्रेष्ठ गुण हो सकते हैं।

क्या वह भी मुझे चाहता/चाहती है?
अब यहां जाकर एक पेच आता है और चीज़ वाली तुलना छूट जाती है , क्योंकि आप तो किसी चीज़ को पसंद करते हैं , लेकिन वह चीज़ भी आपको पसंद करती है - इसका पता लगाने की कोई तरकीब नहीं है। लेकिन प्रेम के मामले में असली अचीवमेंट तभी महसूस होता है , जब आपको भी कोई चाहनेवाला मिले। प्रेम की असली ताकत यही है कि वह आपको महसूस कराता है कि आप भी कुछ हैं। करोड़ों लोगों की दुनिया में जहां किसी को किसी की परवाह नहीं है , वहां अगर कोई ऐसा व्यक्ति हो जो सिर्फ आपको पसंद करे , आपका खयाल रखे , आपके बारे में सोचे और आपको खुश करने और रखने की जुगत में रहे - दूसरे शब्दों में आपको उसकी जिंदगी का शहंशाह बना दे , तो खुशी कैसे नहीं होगी!
खुशी तो होगी लेकिन कितनी , यह दो-तीन बातों पर डिपेंड करता है। एक यह कि जो आपको चाहता है , क्या वह भी आपकी पहली पसंद है ? दूसरा , जो आपको चाहता है , उसे और कितने लोग चाहते हैं , यानी उसकी मार्केट में क्या डिमांड है ? अगर उसे चाहने वाले कई हैं , फिर भी उसने आपको चाहा , तो आपका ईगो फूलकर कुप्पा हो जाता है। लेकिन जो आपको चाहता है , उसकी खास पूछ नहीं है और आपको भी वह कुछ खास आकर्षित नहीं करता , तो आपको थोड़ा अच्छा तो लगता है , मगर उसके प्रति प्यार नहीं , दया उमड़ती है।

यानी जिस तरह लालू प्रसाद अंडमान-निकोबार के किसी अदने से टापू के सर्वेसर्वा बनकर संतुष्ट नहीं हो सकते , वैसे ही हम भी हर किसी का प्यार पाकर संतुष्ट नहीं हो सकते। हम भी किसी खास दिल का सितारा बनने की चाह रखते हैं। अब यह खास व्यक्ति कौन है , यह वक्त , जरूरत और उपलब्धता पर निर्भर करता है। छुटपन में मुमकिन है आपको पड़ोस में ही ख्वाबों का शहजादा या मलिका नजर आने लगे। लेकिन बाद में स्कूल या कॉलेज में जब आपकी पहुंच का दायरा बढ़ता है तो उसकी जगह कोई और ले सकता है। व्यक्ति बदल जाता है मगर भावना वही रहती है। आपको एक बार फिर उस नए शख्स की हर चीज़ अच्छी लगती है। उसका गम आपका गम है , उसकी खुशी आपकी खुशी है। और इसीलिए उसके होठों की मुस्कान के लिए आप बाजार में नया- नया गिफ्ट ढूंढते रहते हैं। उसको एसएमएस करते हैं , उसको बताते हैं कि आप उसे कितना प्यार करते हैं।

प्यार है या इन्वेस्टमेंट?
आप इसे प्यार कहेंगे , मगर माफ कीजिए , यह सब तो एक तरह का इन्वेस्टमेंट है , ताकि वह व्यक्ति भी आपके प्रेम से इम्प्रेस्ट होकर आपको प्रेम करे और आपको महसूस कराए कि आप भी कुछ हैं। दो व्यक्तियों में इस तरह लेनदेन चलता रहे तो आप कह सकते हैं कि दोनों प्यार करते हैं। लेकिन असल में दोनों एक-दूसरे की जरूरत और ख्वाहिश को पूरा कर रहे हैं। दोनों को महसूस हो रहा है कि मैंने कुछ अचीव किया।
लेकिन ये दोनों कब तक प्यार करते रहेंगे ? जब तक अचीव करने के लिए कोई और उपलब्ध नहीं है। आप दसवीं में 90 परसेंट ले आए , आपको अच्छा लगा , मगर क्या आप उससे संतुष्ट हो गए ? कल आप ग्रैजुएशन करेंगे , एमबीए करेंगे। कहने का अर्थ यह कि अगर जिंदगी में हासिल करने के लिए और भी मंजिलें हैं और आपको लगता है कि आप उन्हें पा सकते हैं , तो क्या आप कोशिश नहीं करेंगे?

चलिए , पहेली छोड़कर सीधे मतलब पर आते हैं। एक व्यक्ति से आज प्रेम हुआ , अच्छा लगा , जाना-समझा। लेकिन कल कोई और मिला , उसमें कुछ अतिरिक्त खूबियां हैं , जो इस पहलेवाले में नहीं हैं। उसे भी पाने की इच्छा हुई। तो क्या कोशिश की जाए ? कोशिश करने में क्या हर्ज है ? ना में जवाब मिला तो मौजूदा तो है। बल्कि क्या मौजूदा व्यक्ति से प्यार करते हुए एक और से नहीं किया जा सकता ? सैद्धांतिक रूप से तो किया जा सकता है , मगर प्रैक्टिकल लेवल पर दिक्कतें आती हैं , क्योंकि जैसे ही आपके प्रिय ने किसी और को चाहा और आपको बताया या पता चला , वैसे ही आपका वह भ्रम टूट जाता है कि इस शख्स के लिए मैं एक्सक्लूसिव हूं। इसी भ्रम या भरोसे के बल पर ही तो आप प्रेम के झूले में झूल रहे थे। इसके बाद शुरू होता है यातना का दौर। महान प्रेम की भावना की जगह ले लेते हैं डर , जलन , खुद पर दया और बदला जैसे नेगेटिव इमोशंस। ऐसी ही दिमागी हालत में कई बार लोग किसी की जान ले लेते हैं या जान दे देते हैं।

जान देने वाले वे होते हैं , जिन्हें लगता है कि अब उनकी किसी को जरूरत नहीं रही , इसलिए जीने से क्या फायदा। दूसरी तरफ जान लेने वाले वे होते हैं , जो अपनी जरूरत पूरी करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। दोनों ही हालात में मामला जरूरत का है , जो पूरी हो तो आदमी खुश रहेगा , वरना मायूस।

अब सवाल सिर्फ यह बचता है कि क्या बिना जरूरत का प्यार मुमकिन है ? एक ऐसा प्यार , जिसमें आप किसी को नि:स्वार्थ भाव से चाहें , उस पर नेमतें लुटाते रहें और बदले में कुछ भी न चाहें। अगर वह किसी और से प्यार करे , तो भी ईर्ष्या न करें। अगर आप ऐसा प्यार कर सकते हैं , तो आप और आपका प्यार महान है। वरना वह अपनी साइकलॉजिकल जरूरतें पूरी करने का सामान है। और जैसा कि हमने पहले ही कहा - ऐसे प्यार में क्या कमाल है ?

इस मामले में आपकी क्या राय है ? क्या आपको भी लगता है कि प्यार लेनदेन का ही एक मामला है ? अपनी राय देने के लिए यहां क्लिक करें

(यह लेख 13 फरवरी को नवभारतटाइम्स.कॉम पर प्रकाशित हुआ था।)

एक देशद्रोही ने कैसे मनाया 15 अगस्त

कितना अच्छा दिन है आज। हम अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्ति के साठ साल का जश्न मना रहे हैं। लाल किले से लेकर स्कूल-कॉलेजों में और मुहल्लों से लेकर अपार्टमेंटों तक में तिरंगा फहराया जा रहा है , बच्चों में मिठाइयां बांटी जा रही हैं। मेरे अपार्टमेंट में भी देशभक्ति से भरे गाने बज रहे हैं और मैंने उस शोर से बचने के लिए अपने फ्लैट के सारे दरवाज़े बंद कर दिए हैं। मैं नीचे झंडा फहराने के कार्यक्रम में भी नहीं जा रहा जहां अपार्टमेंट के सारे लोग प्रेज़िडेंट साहब और लोकल नेताजी का भाषण सुनने के लिए जमा हो रहे हैं। मैं इस छुट्टी का आनंद लेते हुए घर में बैठा बेटी के साथ टॉम ऐंड जेरी देख रहा हूं।

आप मुझे देशद्रोही कह सकते हैं। कह सकते हैं कि मुझे देश से प्यार नहीं है। मुझपर जूते-चप्पल फेंक सकते हैं। कोई ज़्यादा ही देशभक्त मुझपर पाकिस्तानी होने का आरोप भी लगा सकता है।

मैं मानता हूं कि मेरा यह काम शर्मनाक है , लेकिन मैं क्या करूं ? मैं जानता हूं कि जब मैं नीचे जाऊंगा और लोगों को बड़ी-बड़ी देशभक्तिपूर्ण बातें बोलते हुए देखूंगा तो मुझसे रहा नहीं जाएगा। वहां हमारे लोकल एमएलए होंगे जिनके भ्रष्टाचार के किस्से उनकी विशाल कोठी और बाहर लगीं चार-पांच कारें खोलती हैं , वह हमारे बच्चों को गांधीजी के त्याग और बलिदान की बात बताएंगे। वहां हमारे सेक्रेटरी साहब होंगे जिन्होंने मकान बनते समय लाखों का घपला किया और आज तक जबरदस्ती सेक्रेटरी बने हुए हैं , वह देश के लिए कुर्बानी देनेवाले शहीदों की याद में आंसू बहाएंगे। वहां अपार्टमेंट के वे तमाम सदस्य होंगे जिन्होंने नियमों को ताक पर रखकर एक्स्ट्रा कमरे बनवा लिए हैं , और कॉमन जगह दखल कर ली है , ऐसे भी कई होंगे जिन्होंने बिजली के मीटर रुकवा दिए हैं। ये सारे लोग वहां तालियां बजाएंगे कि आज हम आज़ाद हैं।

क्या करूं अगर मुझे ऐसे लोगों को देशभक्ति की बात करते देख गुस्सा आ जाता है। इसलिए मैंने फैसला कर लिया है कि मैं वहां जाऊं ही नहीं। हालांकि मैं जानता हूं कि मैं उनसे बच नहीं पाऊंगा। ये सारे लोग आज आज़ादी का जश्न मनाने के बाद कल शहर की सड़कों पर निकलेंगे और हर गली , हर चौराहे , हर दफ्तर , हर रेस्तरां में होंगे। मैं उनसे बचकर कहां जाऊंगा

कल 16 अगस्त को जब मैं ऑफिस के लिए निकलूंगा और देखूंगा कि टंकी में तेल नहीं है तो मेरी पहली चिंता यही होगी कि तेल कहां से भराऊं , क्योंकि ज़्यादातर पेट्रोल पंपों में मिलावटी तेल मिलता है (पेट्रोल पंप का वह मालिक भी आज आज़ादी का जश्न मना रहा होगा , अगर वह खुद नेता होगा तो शायद भाषण भी दे रहा होगा)। खैर , अपने एक विश्वसनीय पेट्रोल पंप तक मेरी गाड़ी चल ही जाएगी , इस भरोसे के साथ मैं आगे बढ़ूंगा और चौराहे की लाल बत्ती पर रुकूंगा। रुकते ही सुनूंगा मेरे पीछे वाली गाड़ी का हॉर्न, जिसका ड्राइवर इसलिए मुझपर बिगड़ रहा होगा कि मैं लाल बत्ती पर क्यों रुक रहा हूं। मेरे आसपास की सारी गाड़ियां , रिक्शे , बस सब लाल बत्ती को अनदेखा करते हुए आगे बढ़ जाएंगे , क्योंकि चौराहे पर कोई पुलिसवाला नहीं है। मैं एक देशद्रोही नागरिक जो आज आज़ादी के समारोह में नहीं जा रहा , कल उस चौराहे पर भी अकेला पड़ जाऊंगा , जबकि सारे देशभक्त अपनी मंज़िल की ओर बढ़ जाएंगे।

अगले चौराहे पर पुलिसवाला मौजूद होगा , इसलिए कुछ गाड़ियां लाल बत्ती पर रुकेंगी। लेकिन बसवाला नहीं। उसे पुलिसवाले का डर नहीं , क्योंकि या तो वह खुद उसी पुलिसवाले को हफ्ता देता है , या फिर बस का मालिक खुद पुलिसवाला है , या कोई नेता है। नेताओं , पुलिसवालों और पैसेवालों के लिए इस आज़ाद देश में कानून न मानने की आज़ादी है। मैं देखूंगा कि मेरे बराबर में ही एक देशभक्त पुलिसवाला बिना हेल्मेट लगाए बाइक पर सवार है , लेकिन मैं उसे टोकने का खतरा नहीं मोल ले सकता , क्योंकि वह किसी भी बहाने मुझे रोक सकता है , मेरी पिटाई कर सकता है , मुझे गिरफ्तार कर सकता है। आप मुझे बचाने के लिए भी नहीं आएंगे क्योंकि मैं ठहरा देशद्रोही जो आज आज़ादी का जश्न मनाने के बजाय कार्टून चैनल देख रहा है।

आगे चलते हुए मैं उन इलाकों से गुज़रूंगा जहां लोगों ने सड़कों पर घर बना दिए हैं , लेकिन उन घरों को तोड़ने की हिम्मत किसी को नहीं है , क्योंकि वे वोट देते हैं। वोट बेचकर वे सड़क को घेर लेने की आज़ादी खरीदते हैं , और वोट खरीदकर ये एमएलए-एमपी विधानसभा और संसद में पहुंचते हैं जहां एक तरफ उन्हें कानून बनाने का कानूनी अधिकार मिल जाता है , दूसरी तरफ कानून तोड़ने का गैरकानूनी अधिकार भी। कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता। इसलिए वे अपने वोटरों से कहते हैं , रूल्स आर फॉर फूल्स। मैं भी कानून तोड़ता हूं , तुम भी तोड़ो। मस्त रहो , बस मुझे वोट देते रहो , मैं तुम्हें बचाता रहूंगा।

इसको कहते हैं लोकतंत्र। लोग अपने वोट की ताकत से नाजायज़ अधिकार खरीदते हैं , अपनी आज़ादी खरीदते हैं - कानून तोड़ने की आज़ादी। यह तो मेरे जैसा देशद्रोही ही है जो लोकतंत्र का महत्व नहीं समझ रहा , जिसने अपने फ्लैट में एक इंच भी इधर-उधर नहीं किया , और उसी तंग दायरे में सिमटा रहा , जबकि देशभक्तों ने कमरे , मंजिलें सब बना दीं सिर्फ इस लोकतंत्र के बल पर। आज उसी लोकतांत्रिक देश की आज़ादी की 60वीं सालगिरह पर लोक और सत्ता के इस गठजोड़ को और मज़बूती देने के लिए जगह-जगह ऐसे ही कानूनतोड़क लोग अपने कानूनतोड़क नेता को बुला रहे है।

जनता के ये सेवक आज अपने-अपने इलाकों में तिरंगा फहराएंगे। एक एमएलए-एमपी और बीसियों जगह से आमंत्रण। लेकिन देशसेवा का व्रत लिया है तो जाना ही होगा। आखिरकार जब भाषण देते-देते थक जाएंगे तो रात को किसी बड़े व्यापारी-इंडस्ट्रियलिस्ट के सौजन्य से सुरा-सुंदरी का सहारा लेकर अपनी थकान मिटाएंगे। यह तो मेरे जैसे देशद्रोही ही होंगे जो अपने फ्लैट में दुबके बैठे है और जो रात को दाल-रोटी-सब्जी खाकर सो जाएंगे।

नीचे देशभक्ति के गाने बंद हो गए हैं , भाषण शुरू हो चुके हैं। जय हिंद के नारे लग रहे हैं। मेरा मन भी करता है कि यहीं से सही , मैं भी इस नारे में साथ दूं। दरवाज़ा खोलकर बालकनी में जाता हूं। नीचे खड़े लोगों के चेहरे देखता हूं। चौंक जाता हूं , अरे , यह मैं क्या सुन रहा हूं , ऊपर से हर कोई जय हिंद बोल रहा है , लेकिन मुझे उनके दिल से निकलती यही आवाज़ सुनाई दे रही है - मेरी मर्ज़ी। मैं लाइन तोड़ आगे बढ़ जाऊं , मेरी मर्जी। मैं रिश्वत दे जमीन हथियाऊं , मेरी मर्ज़ी। मैं हर कानून को लात दिखाऊं , मेरी मर्ज़ी...

मैं बालकनी का दरवाज़ा बंद कर वापस कमरे में आ गया हूं। ड्रॉइंग रूम में बेटी ने टीवी के ऊपर प्लास्टिक का छोटा-सा झंडा लगा रखा है। मैं उसके सामने खड़ा हो जाता हूं। झंडे को चूमता हूं , और बोलने की कोशिश करता हूं - जय हिंद। लेकिन आवाज़ भर्रा जाती है। खुद को बहुत ही अकेला पाता हूं। सोचता हूं , क्या और भी लोग होंगे मेरी तरह जो आज अकेले में आज़ादी का यह त्यौहार मना रहे होंगे। वे लोग जो इस भीड़ का हिस्सा बनने से खुद को बचाये रख पाए होंगे ? वे लोग जो अपने फायदे के लिए इस देश के कानून को रौंदने में विश्वास नहीं करते ? वे लोग जो रिश्वत या ताकत के बल पर दूसरों का हक नहीं छीनते ? क्या आप हैं ऐसे इंसान ? या बनना चाहते हैं ऐसा नागरिक ? अगर हां तो मेरी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाने के लिए यहां क्लिक कीजिए। मैं जानना चाहता हूं , क्या इस देश में अभी भी कोई उम्मीद बची है।
यह लेख 15 अगस्त 2007 को नवभारतटाइम्स.कॉम में प्रकाशित हुआ था।
इस स्टोरी पर टोटल कॉमेंट्स (735) दूसरे रीडर्स के कॉमेंट्स पढ़ें और अपना कॉमेंट लिखें