वरुण गांधी में एक नया बाल ठाकरे और नरेंद्र मोदी ढूंढने वाले लोगों को सुप्रीम कोर्ट में उनके द्वारा दिए गए आश्वासन से तकलीफ पहुंची होगी। उन लोगों को भी कष्ट पहुंचा होगा जो दावा कर रहे थे कि वरुण ने कोई भड़काऊ भाषण नहीं दिया और उन्हें झूठमूठ में फंसाया जा रहा है। जिन्हें न मालूम हो , उन्हें बता दें कि वरुण ने 13 अप्रैल को कोर्ट में अपने वकील के मार्फत कहलवाया कि वह एक ऐफिडेविट देने को तैयार हैं कि अगर उन्हें ज़मानत पर छोड़ दिया जाए तो वह भविष्य में वैसे भड़काऊ भाषण नहीं देंगे। ( पढ़ें - ऐसा भाषण दुबारा नहीं देंगे वरुण )
इससे क्या पता चलता है ? यही कि वह मान रहे हैं कि उन्होंने पीलीभीत में भड़काऊ भाषण दिया था। वह मान रहे हैं कि सीडी में आवाज़ उन्हीं की थी। अगर वरुण इलेक्शन कमिशन और मीडिया के सामने सच कह रहे थे कि सीडी में उनकी आवाज़ नहीं है , तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट में भी डटे रहना चाहिए था कि सीडी में उनकी आवाज़ नहीं थी। वह ऐफिडेविट देने की सुप्रीम कोर्ट की सलाह को नहीं मानते और कहते कि यह सब जालसाज़ी है। लेकिन इलेक्शन कमिशन के सामने झूठ बोलना आसान है , सुप्रीम कोर्ट के सामने नहीं। ( भाषण का विडियो देखें ) ।
तो अब जब वरुण ने मान लिया है कि उन्होंने पीलीभीत में भड़काऊ भाषण दिया था मगर भविष्य में ऐसा भाषण नहीं देंगे - इससे वरुण का कौनसा चेहरा सामने आता है ? क्या हम मान लें कि वह कम्यूनल से सेक्यूलर हो गए हैं या यह कि वह सिर्फ जेल से बाहर निकलने को लिए ऐसा कह रहे हैं ? दूसरी संभावना ज़्यादा सही लगती है क्योंकि कोई हफ्ते भर में अपनी विचारधारा नहीं बदल सकता। मगर यदि वह सिर्फ जेल की रोटियों से बचने के लिए ही ऐसा कह रहे हैं तो यह और भी बुरा है। इससे पता चलता है कि सांप्रदायिक भाषणों से होनेवाला फायदा तो वह बटोरना चाहते हैं लेकिन उससे होनेवाले नुकसान के लिए वह तैयार नहीं हैं। अगर वरुण अपने स्टैंड पर डटे रहते तो वह उनकी ईमानदारी दिखाता।
बाल ठाकरे ज़माने से ऐसी बातें कहते आए हैं जो कभी मुसलमानों , कभी तमिलों और कभी हिंदीभाषियों के खिलाफ जाती रही हैं। लेकिन हमने कभी उनको अपने किसी बयान के लिए माफी मांगते या सफाई देते नहीं सुना या पढ़ा। इसका उन्हें फायदा भी हुआ और नुकसान भी क्योंकि जहां वह इस बूते पर संकीर्ण हिंदू और मराठी वोट पर एकाधिकार जमा पाए , वहीं वह अपनी ताकत एक सीमा से आगे नहीं बढ़ा पाए। लेकिन इससे उनकी ईमानदारी झलकती है। वही हाल नरेंद्र मोदी का है। हम जानते हैं और दुनिया जानती है वह हिंदूवादी और मुस्लिमविरोधी हैं और वह इसे छुपाने का कोई खास प्रयास भी नहीं करते।
लेकिन वरुण या आडवाणी ऐसे नहीं हैं। आडवाणी भी रथयात्रा और बाबरी विध्वंस के कारण मिले वोट लपकने को तैयार हैं मगर उससे अगर जेल मिलती हो तो यह झूठ बोलने से नहीं चूकते कि उसमें हमारा कोई रोल नहीं था। अरे भाई , अगर आप किसी सिद्धांत में भरोसा करते हो तो साफ कहो कि हम करते हैं और इसके लिए हम जेल क्या , दुनिया छोड़ने के लिए तैयार हैं। लेकिन ऐसा वे क्यों करेंगे ? दुनिया छोड़ने के लिए पार्टी वर्कर और आम जनता है जिसे भड़काकर और दंगा कराकर वोट की फसल काट ली जाए। वरुण भी इसी कैटिगरी के हैं। वह भी भड़काऊ भाषण देकर पीलीभीत से अपने लिए वोट की फसल काटना चाहते थे लेकिन जब पता चला कि इस कोशिश में जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है तो पलट गए। वरुण गांधी के मामले से बचपन में पढ़ी एक गधे की कहानी याद आ गई। उस गधे को कहीं से एक शेर की खाल मिल गई और वह शेर बनकर सबको डराने लगा। लेकिन जब कुछ लोग शेर की खाल में छुपे उस गधे के पीछे लाठियां लेकर भागे तो गधा डर के मारे रेंकते हुए भागा। इसके साथ ही उसकी पोल भी खुल गई।
इस टिप्पणी पर नवभारत टाइम्स के पाठकों के 220 कॉमेंट्स। सारे कॉमेंट्स पढें और अपना कॉमेंट लिखें।
रविवार, 26 अप्रैल 2009
सदस्यता लें
संदेश (Atom)